140 : ग़ज़ल – नाम पर ग़ज़लों के पैरोडी
नाम पर ग़ज़लों के पैरोडी , हजल मत दो ॥
चाहिए मुझको असल कोरी नक़ल मत दो ॥
छोड़ देंगे देखना अधबीच में जाकर ,
माहिरों के काम में बेजा दख़ल मत दो ॥
बिन जगाए गर किसी सोते को काम अपना ,
हो सके तो नींद में उसकी ख़लल मत दो ॥
खा गया ग़ुर्बत में जो काजू समझ पोची-
मूँगफलियाँ , अब रईस हूँ आजकल मत दो ॥
फिर न कहना चाय-पानी तक नहीं पूछा ,
यों मेरी देहलीज़ को बस छू के चल मत दो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति