■ मुक्तक : 576 – सोने से ज़्यादा Posted on July 13, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments सोने से ज़्यादा उनकी नज़र में खरा रहूँ ॥ पीला कभी पड़ूँ न हरा ही हरा रहूँ ॥ मैं क्या करूँ कि जेह्न-ओ-दिल में दुश्मनों के भी , कलसे में गंगा-जल सा लबालब भरा रहूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 1,616