■ मुक्तक : 582 – शायद लगेगी तुमको Posted on July 19, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments शायद लगेगी तुमको मेरी ख़्वाहिश अजब है ।। मानो न मानो मुझको सच मगर ये तलब है ।। कर दूँ तमाम काम ग़रीबों के मुफ़्त पर , ग़ुर्बत मेरी ही मुझसे चिपकी छूटती कब है ? ( ग़ुर्बत =दरिद्रता ,कंगाली ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,417