मुक्तक : 586 – ज़िन्दगी यूँ ही ग़मे Posted on July 21, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ज़िन्दगी यूँ ही ग़मे गेती की मारी है ॥ जिस्म भी तक्लीफ़ से हल्कान भारी है ॥ उसको चारागर भी चाहेंं ज़ह्र देना पर , उनपे भी क़ानून की तलवार तारी है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 112