■ मुक्तक : 589 – लिए उड़ानों की हसरतें Posted on July 22, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments लिए उड़ानों की हसरतें जंगलों में पैदल सफ़र करें ॥ हुक़ूमतों की रख आर्ज़ूएँ ग़ुलामियों में बसर करें ॥ न जाने ख़ुद की ख़ताएँ हैं या नसीब की चालबाज़ियाँ , कि हम तमन्नाई क़हक़हों के हमेशा मातम मगर करें ॥ –डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,257