मुक्तक : 591 – घूँट दो घूँट भरते-भरते Posted on July 29, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments घूँट दो घूँट भरते-भरते फिर , पूरा भर-भर रिकाब पीने लगे ॥ आबे ज़मज़म के पीने वाले हम , धीरे-धीरे शराब पीने लगे ॥ दर्दो-तक़्लीफ़ के पियक्कड़ थे , पर तेरा हिज्रे-ग़म न झेल सके , पहले पीते थे बाँधकर हद को , बाद को बेहिसाब पीने लगे ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 442