■ मुक्तक : 594 – इक सिवा उसके कहीं Posted on August 3, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments इक सिवा उसके कहीं दिल आ नहीं सकता ॥ है ये पागलपन मगर अब जा नहीं सकता ॥ क्या करूँ मज्बूर हूँ अपनी तमन्ना से ? फिर भी तो चाहूँ उसे जो पा नहीं सकता ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,128