मुक्तक : 604 – निपट गंजों के लिए Posted on September 18, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments चाँद से गंजों को काले विग घने ॥ दंतहीनों वास्ते डेंचर बने ॥ उड़ नहीं सकते मगर हों पीठ पर , पर शुतुरमुर्गों के शायद देखने ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 109