■ मुक्तक : 609 – लुत्फ़ो-मज़ा Posted on October 6, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments इक ज़रा लुत्फ़ो-मज़ा जब हों न तारी ।। हर तरफ़ तक्लीफ़ो-ग़म भारी से भारी ।। और यही आलम हो रहना उम्र भर तो , क्यों करूँ मैं ज़िंदगी की पासदारी ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,568