■ मुक्तक : 615 – छिप-छिपाकर Posted on October 12, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments छिप-छिपाकर भी न खुल्ले तौर जारी है ॥ ख़त्म होने की जगह और-और जारी है ॥ जाने कब से और कब तक हाँ मगर सच्चों- बेगुनाहों को सज़ा का दौर जारी है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,217