■ मुक्तक : 625 – मुझको बेशक़ न Posted on October 26, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुझको बेशक़ न नज़र आता था मेरा साहिल ॥ चाँद , तारों सी बड़ी दूर थी मेरी मंज़िल ॥ लुत्फ़ आता था उन्हे पाने तैर चलने में, जब तक उम्मीद थी लगता था ज़िंदगी में दिल ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,579