■ मुक्तक : 626 – मेरे लिए वो ख़ुद को Posted on October 27, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments मेरे लिए वो ख़ुद को तलबगार क्यों करे ? नावों के होते तैर नदी पार क्यों करे ? बिखरे हों इंतिख़ाब को जब फूल सामने , कोई भी हो पसंद भला ख़ार क्यों करे ? [तलबगार = इच्छुक , इंतिख़ाब = चयन , ख़ार = काँटा ] -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,577