■ मुक्तक : 635 – हँसता-हँसता Posted on November 11, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments हँसता-हँसता ये शाद उठता है ॥ दर्द ये नामुराद उठता है ॥ दुबका रहता है सामने सबके , सबके जाने के बाद उठता है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,690