■ मुक्तक : 639 – चौंकाता Posted on November 16, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ज़िंदगी में चाहे बस इक बार चौंकाता ॥ यक ब यक आकर मेरे दर-दार चौंकाता ॥ मैं मरूँ जिस दुश्मने जाँ पे ख़ुदारा सच , काश वो भी मुझको करके प्यार चौंकाता ॥ ( यक ब यक=अचानक, दार=घर, ख़ुदारा=ईश्वर के लिए, काश=हे प्रभु ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,356