मुक्तक : 645 – सब्ज़ कब सुर्ख़ Posted on November 25, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments सब्ज़ कब सुर्ख़ कब ? ये ज़र्द-ज़र्द लिखती है ॥ औरत-औरत ही लेखती न मर्द लिखती है ॥ चाहता हूँ मैं लफ़्ज़-लफ़्ज़ में ख़ुशी लिक्खूँ , पर क़लम मेरी सिर्फ़ दर्द-दर्द लिखती है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 128