■ मुक्तक : 648 – लुत्फ़ को अपने ही Posted on November 30, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments लुत्फ़ को अपने ही हाथों से शूल करता हूँ ।। जानते-बूझते ये कैसी भूल करता हूँ ? जिसका हक़दार , न हूँ क़ायदे से मैं क़ाबिल , उसकी दिन-रात तमन्ना फिज़ूल करता हूँ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 1,741