■ मुक्तक : 649 – नकली तेल-डालडा Posted on December 1, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments नकली तेल-डालडा से असली घृत हो जाता ॥ कालकूट के जैसे विष से अमृत हो जाता ॥ तेरा मुझको छू लेना यदि संभव होता तो , मैं निर्जीव चिता पे लेटा जागृत हो जाता ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,740