■ मुक्तक : 651 – बदन को फूँकता Posted on December 2, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments बदन को फूँकता ठंडा यों ही बुख़ार करूँ ॥ चढ़े दिमाग़ के गुस्से का यों उतार करूँ ॥ क़लम ले दिल की ज़िंदगी की डायरी में बयाँ , मैं अपनी शायरी में अपना हर ग़ुबार करूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,452