158: ग़ज़ल – मशहूर को जहाँँ से गुमनाम
मशहूर को जहाँँ से , गुमनाम बना डाला ।।
होते ही सुब्ह फ़ौरन , क्यों शाम बना डाला ।।1।।
मैकश हुआ ही तेरी , सुह्बत का असर पूरा ,
इक मै-अदू को भी मै-आशाम बना डाला ।।2।।
लतियाता तू न होता , तो बस मैं चना रहता ,
ठोकर ने तेरी काजू-बादाम बना डाला ।।3।।
पूनम की चाँदनी था , बरगद का था साया मैं ,
तूने भरी दुपहरी , का घाम बना डाला ।।4।।
हालात ने वो करवट बदली कि सियावर को ,
श्रीराम से बदल राधेश्याम बना डाला ।।5।।
( मैकश=शराबी ,मै-अदू=मदिरा-शत्रु ,मै-आशाम=मदिरा-प्रेमी ,घाम=धूप )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति