■ मुक्तक : 661 – बेकार है , ख़राब है Posted on January 18, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments बेकार है , ख़राब है , बहुत ग़लीज़ है ॥ उसके लिए है सस्ती , मुफ़्त जैसी चीज़ है ॥ बेशक़ नहीं हो मेरी ख़ुशगवार ज़िंदगी , मुझको मगर बहुत-बहुत-बहुत अज़ीज़ है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,368