■ मुक्तक : 662 – क्या इसलिए कि Posted on January 19, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments क्या इसलिए कि आस्माँ से औंधा गिरा हूँ ? सब जिस्म पुर्जा-पुर्जा मगर टुक न मरा हूँ ! अपने ही आस-पास हैं मेरे तो वलेकिन , क्यों लग रहा है दुश्मनों के बीच घिरा हूँ ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,253