अकविता (14) – सतत अनुसंधान ,शोध ,खोज ,तलाश
अभी तो हम चेतन हैं ।
यदि पहले से ही हमें पता हो
हमारी मौत का दिन ।
हमें पता हो कब होने वाला है
हमारा अपमान ?
हम जिस परीक्षा में बैठने वाले हैं
उसमें क्या पूछा जाने वाला है ?
क्या चल रहा है दूसरों के मन में ?
वह सब जान सकें चुटकी बजाते ही
जो जो भी हम जानना चाहें ।
प्रश्न यह है कि –
यदि यह सब संभव हो जाए तो क्या होगा ?
यदि हम सब यह मान बैठें या
सचमुच ही यही सच होता भी हो कि –
जब जब जो जो होता है
तब तब वो वो ही होता ही है ।
तो फिर हमें क्यों रह जाएगी
कुछ भी करने की आवश्यकता ?
हमें करना भी चाहिए क्यों कुछ ?
हमारे जीवन का क्या उद्देश्य होगा
यदि सब कुछ पूर्व निर्धारित है तो ?
क्या अज्ञात के प्रति जिज्ञासा ही
जीवन का आनंद नहीं है ?
संघर्ष ही गति का कारण नहीं है क्या ?
लगता है
हमें निरंतर चलायमान बनाए रखने का
अनिवार्य कारण है –
सतत अनुसंधान , शोध , खोज , तलाश ।
अन्यथा क्या हम जड़ न हो जाएंगे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति