■ मुक्तक : 679 – कभी दूर से Posted on March 3, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments ये कहने का मुझसे सँभलकर चलाकर ; कभी दूर से तो कभी पास आकर ; मैं पूछूँ ज़माने से क्या हक़ है उनको , जो चलते हैं ख़ुद लड़खड़ा-लड़खड़ाकर ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,376