गीत (32) – चीत्कार-क्रंदन से लथपथ
चीत्कार-क्रंदन से लथपथ एक विहँसता गान मिला ॥
जैसे इक लघु सर्प नेवले से करता हो महायुद्ध ।
जैसे इक मूषक बिल्ली पर भय तजकर हो रहा क्रुद्ध ।
आँधी से इक दीप जूझ तम का करते अवसान मिला ॥
जैसे कोई नंगे पाँवों काई पर सरपट भागे ।
जैसे पीछे भूखे सिंह से हिरण बचे आगे-आगे ।
वर्षा से गलने से बचता कच्चा खड़ा मकान मिला ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति