गीत : 36 – जीवन – चाय
बहुत बेस्वाद , केवल गर्म पानी और अति फीकी ॥
लगा होंठ अपने मेरी कर दो जीवन-चाय तुम मीठी ॥
रहे तुम भी अछूते औ’ हृदय मेरा रहा रीता ।
समय दोनों का जो एकांत के सान्निध्य में बीता ।
कि अब जब आ गए मेले में तो मेरे निवेदन की –
करो स्वीकार पहली और अंतिम प्रेम की चीठी ॥
पहाड़ों से खड़े पैरों को गति औ’ लास्य मिल जाए ।
निरंतर चुप पड़े होठों को स्वर औ’ हास्य मिल जाए ।
तुम्हारे हाथ में है , हाथ मेरा थाम लो यदि तुम –
कि मुझ अंधे को मिल जाएगा कोई लक्ष्य या वीथी ॥
( चीठी=पत्र , लास्य=नृत्य ,वीथी=मार्ग )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति