■ मुक्तक : 685 – इक अहा Posted on March 28, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments इक अहा सौ आहों के भरने के बाद ।। हिम सी यदि ठंडक मिले जरने के बाद ।। ऐसी आहा ऐसी शीतलता है ऐसी , फिर से ज्यों जी जाए जिव मरने के बाद ।। [ जरने=जलना ,जिव=जीव ] -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,178