■ मुक्तक : 692 – मेरा मुखड़ा चाँद का टुकड़ा नहीं Posted on April 7, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments मेरा मुखड़ा चाँद का टुकड़ा नहीं पर इसमें क्षण-क्षण ॥ देखूँ जब दिखलाए मुझको अक्स में मेरे अकर्षण ॥ इसलिए तो सच्चे जग में प्राणप्रिय मुझको लगे ये , मेरा धुँधला-टूटा-झूठा-चापलूसी करता दर्पण ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,438