■ मुक्तक : 697 – मैं ग़ज़ल कहता हूँ ॥ Posted on April 13, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments क़िला किसी को , किसी को मैं महल कहता हूँ ।। किसी को चाँद , किसी रुख़ को कमल कहता हूँ ।। सुने न ग़ौर से अल्फ़ाज़ मेरे , कान उनके बड़े ही शौक़ से फिर भी मैं ग़ज़ल कहता हूँ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,385