■ मुक्तक : 705 – ग़म बड़े मिले ॥ Posted on April 30, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments बैठे कहीं , कहीं-कहीं खड़े-खड़े मिले ॥ कुछ ख़ुद ख़रीदे कुछ नसीब में जड़े मिले ॥ तिल-राई ज़िंदगी में ताड़ औ’ पहाड़ से , हँस-रो के ढोने दिल के सर को ग़म बड़े मिले ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,372