■ मुक्तक : 707 – बाज का भी बाप ॥ Posted on May 6, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments जिस्म से ले रूह तक की , की है हमने माप सच ॥ आदमी क्या हो ? बताएँगे हमें क्या आप सच ? दिखने में गौरैया ,मैना ,फ़ाख़्ता ,बुलबुल ! अरे , अस्ल में है गिद्ध ,चील औ’ बाज़ का भी बाप सच ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,467