■ मुक्तक : 709 – कैसा मैं परिंदा था ? Posted on May 14, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments जाने कितनों में मैं अजीब औ’ चुनिंदा था ? उम्र भर फड़फड़ा , घिसट-घिसट भी ज़िंदा था ।। तोड़ पिंजरा सका न , चल सका न , उड़ पाया ; पैर थे , पर थे , हाय ! कैसा मैं परिंदा था ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,678