■ मुक्तक : 715 – पाँवों की ज़िद में ज़िंदगी Posted on May 21, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments पिघली भी होके साँचे में ढाले नहीं ढली !! लकड़ी यों तर-ब-तर थी कि जाले नहीं जली !! आँखें थीं , नाक-कान थे , थे हाथ , भी मगर पाँवों की ज़िद में ज़िंदगी चाले नहीं चली !! -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,045