■ मुक्तक : 717 – कतरन ही तो माँगी थी Posted on May 23, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments इक कतरन ही तो माँगी थी पूरा थान नहीं ।। चाही थी बस एक कली सब पुष्पोद्यान नहीं ।। पर तुम इक जीरा भी भूखे ऊँट को दे न सके , तुमसा कँगला हो सकता दूजा धनवान नहीं ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,463