धैर्य-करि , बन मत्त दादुर-दल उछल बैठे ॥
स्निग्ध-पथ पर नोक-डग कल चल फिसल बैठे ॥
बिन छुए तुझको तेरी बस आँच से अंगार ,
कितने लोहे मोम-सदृश गल-पिघल बैठे ॥
( धैर्य-करि=संयम के हाथी,मत्त=मतवाला,दादुर-दल=मेंढक समूह,स्निग्ध-पथ=चिकनी राह ,नोक-डग=नुकीले क़दम )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
243