■ मुक्तक : 720 – रीते पड़े यहाँ मन ॥ Posted on May 27, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments जाने कितनी ही भर्तियाँ होती हैं सन-दर-सन ? भाँति-भाँति की रिक्तियों के हैं होते विज्ञापन ।। क्यों किसी का न जाए ध्यान इस ओर भूले भी ? जाने कबसे तो , कितने ही रीते पड़े याँ मन ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,374