मुक्तक : 724 – दो ग़ज़ ज़मीन Posted on June 5, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments दो ग़ज़ ज़मीन अपने दफ़्न को क्या माँग ली ? पैरों तले कि भी ज़मीन उसने खींच ली !! मेरे ही हक़ को मार के वो शाह हो गया , मैं बेतरह पुकारता रहा अली-अली ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 105