गीत : 37 – माधुरी पकड़ ली ॥
कंगन नहीं मिला तो हमने चुरी पकड़ ली ॥
छूटा महानगर तो छोटी पुरी पकड़ ली ॥
कर-कर इलाज हारे पर रोग ना घटा जब ,
अपनी जगह से तिल भर दुःख-कष्ट ना घटा जब ,
औषधियाँ छोड़ हाथों में माधुरी पकड़ ली ॥
ईमानदारियों का पाया सिला बुरा जब ,
अच्छाइयों का बदला अक्सर मिला बुरा जब ,
हमने भी राह धीरे-धीरे बुरी पकड़ ली ॥
लिख-लिख के हमने देखा कुछ भी नहीं हुआ जब ,
हथियार भूलकर भी कोई नहीं छुआ जब ,
तजकर कलम करों में पैनी-छुरी पकड़ ली ॥
( चुरी=चूड़ी , पुरी=नगरी , माधुरी=शराब )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति