मुक्तक : 727 – मुझपे पत्थर चला ॥ Posted on July 11, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments सबसे छुपकर न सबसे उजागर चला ॥ तू न थपकी न चाँटे सा कसकर चला ॥ काँच का टिमटिमाता हुआ बल्ब हूँ , मत किसी ढंग से मुझपे पत्थर चला ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 155