मुक्तक : 730 – केले के छिलके Posted on July 17, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र गूगल सर्च से साभार ) केले के छिलके को न फैली काई बना दो ॥ पतली दरार को न चौड़ी खाई बना दो ॥ संशय के पर्वतों को शक्य हो तो उसी क्षण , विश्वास से मिटा दो या कि राई बना दो ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 201