मुक्तक : 736 – आँखें नहीं माँगूँ ? Posted on July 26, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुझे लाज़िम नहीं इक शम्अ , हरगिज़ भी न इक जुगनूँ ? मैं अंधा हो के भी क्यों भीख में आँखें नहीं माँगूँ ? तो सुन – दिन-रात याँ रहती हुक़ूमत सिर्फ़ अँधेरों की , मना है देखने की बात भी करना , न है मौजूँ !! -डॉ. हीरालाल प्रजापति 115