मुक्तक : 741 – आफ़्ताब बनना है ॥ Posted on August 4, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments न पूछो मुझसे क्या मुझको जनाब बनना है ? किसी से सह्ल नहीं सबसे सा’ब बनना है ।। हँसो न गर तो अभी अपनी आर्ज़ू कह दूँ ? चराग़ हूँ मैं मुझे आफ़्ताब बनना है !! ( सह्ल=सरल , सा’ब=कठिन ,आर्ज़ू=मनोकामना,आफ़्ताब=सूर्य ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 113