मुक्तक : 750 – रो-रो पड़ता हूँ ॥ Posted on August 15, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments भीषण द्वेष-जलन निज मन पर ढो-ढो पड़ता हूँ ॥ घोर दुखी , अत्यंत उदास मैं हो-हो पड़ता हूँ ॥ कोई युगल विचरण करता जब यों ही विहँस पड़ता , अपने एकाकी होने पर रो-रो पड़ता हूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 231