मुक्तक : 763 – एक ही मक़्सद Posted on September 10, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments ज़िंदगी का एक ही मक़्सद रखा ले लूँ मज़ा ॥ जिस तरह भी बन पड़े कर लूँ हर इक पूरी रज़ा ॥ लेकिन इस तक़्दीर ने भी ठान रक्खी थी अरे , वो इनामों की जगह देती रही चुन-चुन सज़ा ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 120