मुक्तक : 768 – अब तो लाज़िम है
सर्द तनहाई से क्या गर्मागर्म महफ़िल से ॥
क्या तलातुम से और क्या पुरसुकून साहिल से ॥
अब तो लाज़िम है , नागुज़ीर है , ज़रूरी है ;
घर से क्या तुझको मैं अभी निकाल दूँ दिल से ॥
( सर्द तनहाई =ठंडा एकान्त ,महफ़िल =सभा ,तलातुम =बाढ़ ,पुरसुकून साहिल =शांत किनारा , लाज़िम,नागुज़ीर,ज़रूरी =अनिवार्य )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति