
दरो-दीवार चाँदी की हों ,छत सोने मढ़ी माना ॥
भले रिसता हो कोने-कोने से चमचम अमीराना ॥
जहाँ के सुन लतीफ़े , मस्ख़रे तक कर भी बाशिंदे –
नहीं हँसते , उसे मैं घर नहीं ; बोलूँ अज़ाख़ाना ॥
( अमीराना =धनाढ्यता ,लतीफ़े =चुट्कुले ,मसख़रे =विदूषक ,तक =देख ,बाशिंदे =निवासी ,अज़ाख़ाना =शोक गृह )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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