मुक्तक : 774 – राह के क़ालीन Posted on October 23, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments आशिक़ो-महबूब भी फटके न फिर उसके क़रीब ॥ हो गया जब शाह से वह माँगता-फिरता ग़रीब ॥ जो हुआ करते थे उसकी राह के क़ालीन सब , वक़्ते-आख़िर पास में उसके न दिक्खे वो हबीब ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 110