मुक्तक : 776 – दलदल में धँस रहा ॥ Posted on October 29, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments वो जानबूझ कर ही तो दलदल में धँस रहा ॥ मर्ज़ी से अपनी काँटों के जंगल में फँस रहा ॥ इस धँसने और फँसने से होगा ज़रूर उसे , कुछ फ़ायदा ही दर्द में वो तब तो हँस रहा ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 120