मुक्तक : 779 – मोहब्बत का मज़ा ? Posted on November 8, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments होगी उसकी अजब ही ढंग से देने की रज़ा ॥ उसको इक सख़्त-खौफ़नाक मगर ख़ुफ़्या-सज़ा ॥ वर्ना क़ाबिल जो सिर्फ़ो सिर्फ़ कराहत के उन्हें , क्यों सरेआम बख़्शता वो मोहब्बत का मज़ा ? ( रज़ा=इच्छा ,ख़ुफ़्या=रहस्यमय ,कराहत=घृणा ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 119