● गीत : दीपावली ॥
पैर धरती पे देखो रखे बिन चली ॥
दुनिया सारी मनाने को दीपावली ॥
कानफोड़ू पटाखों की चहूँदिस धमक ।
जलती बारूद की सूर्य जैसी चमक ।
बूढ़े , शिशु और बीमार इस शोर से ,
जब दहलते हैं भीतर से उठते बमक ।
पूछते हैं धमाकों का औचित्य वो –
जो मचा देता है शांति में खलबली ?
पैर धरती पे देखो रखे बिन चली ॥
दुनिया सारी मनाने को दीपावली ॥
तेल खाने नहीं पर जलाने बहुत ।
ज़ीरो पढ़ने नहीं जगमगाने बहुत ।
सौ के बदले जलाओ दिया एक ही ,
बल्ब इक रोशनी में नहाने बहुत ।
सोचना फिर तुम्हीं तेल कितना बचा ?
एक ही रात में कितनी बिजली जली ?
पैर धरती पे देखो रखे बिन चली ॥
दुनिया सारी मनाने को दीपावली ॥
( ज़ीरो = ज़ीरो बल्ब , बमक = चौंक पड़ना , सहम जाना )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
सामयिक कटाक्ष ,
धन्यवाद !