मुक्तक : 782 – चने नहीं चबाना है ॥ Posted on November 21, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments लाल मिर्ची औ’ बस चने नहीं चबाना है ॥ सोने – चाँदी के पेट भरके कौर खाना है ॥ आज रहता हूँ झोपड़ी में मैंं मगर ब ख़ुदा , मुझको अपने लिए कल इक महल बनाना है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 118